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बढ़ती जनसंख्या और बिलखते हम


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लखनऊ
बढ़ती जनसंख्या और बिलखते हम

विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई को मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस की थीम है लैंगिक समानता की शक्ति को उजागर करना, निश्चित रूप से आपके मन में प्रश्न आएगा यह लैंगिक समानता क्या है?
लैंगिक समानता का अर्थ यह नहीं कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति एक लिंग का हो अपितु लैंगिक समानता का सीधा सा अर्थ समाज में महिला तथा पुरुष के समान अधिकार, स्वतंत्रता ,दायित्व तथा रोजगार के अवसरों के परिप्रेक्ष्य में है। दुनिया की अनंत संभावनाओं को अनलॉक करने के लिए महिलाओं और लड़कियों की आवाज को ऊपर उठाना विश्व जनसंख्या दिवस का मुख्य उद्देश्य है।
यदि आंकड़ों की बात की जाए तो आज भारत 142.86करोड़, की जनसंख्या के साथ ही चीन की जनसंख्या 142.57करोड़ से आगे निकल चुका है भारत 2.9 मिलियन यानी कि 29 लाख के अंतर से चीन से आगे है भारत में 15 वर्ष से लेकर 64 वर्ष की आबादी की जनसंख्या लगभग 68 प्रतिशत है। निश्चित रूप से एक बहुत बड़े पायदान में आज हम विश्व कीर्तिमान में नंबर एक पर खड़े हैं पर फिर भी खुशी से ज्यादा चिंता की बात है क्योंकि इतनी बड़ी जनसंख्या को अशिक्षा बेरोजगारी भुखमरी और गरीबी से बचा पाना लगभग असंभव सा है।
ज्यादा आबादी होने पर संसाधनों का वितरण भी अनियमित होगा एक तरफ हम देखते हैं अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा कुछ चंद मुट्ठी भर लोगों के पास केंद्रित है और ज्यादातर जनसंख्या अपने जीवन के संघर्ष में पलों में प्रतिदिन कम आती है और प्रतिदिन खाती है यानी कि निम्न मध्यम वर्ग के हैं या गरीबी की सीमा में निवास करने वाले लोगों की संख्या इस जनसंख्या में सर्वाधिक है।
हम जेंडर इक्वलिटी की बात करते हैं इसके बावजूद घरेलू हिंसा को रोकने में यह आवश्यक है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था हो महिलाओं की मेंटल हेल्थ अच्छी हो इसके साथ ही शारीरिक स्वास्थ्य भी अच्छा हो और महिलाओं की शक्ति में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हो हम देखते हैं घरेलू हिंसा को रोकने के लिए विभिन्न कानून बनने के बावजूद लगभग 16% महिलाएं प्रतिदिन शारीरिक घरेलू हिंसा से 25% महिलाएं यौन रूप से की जाने वाली हिंसा से 53 प्रतिशत महिलाएं मनोवैज्ञानिक मानसिक शोषण से और 56% आम घरेलू मारपीट हिंसा से परेशान रहती हैं फिर जेंडर इक्वलिटी में समानता और स्वतंत्रता की बात कहां तक जायज है क्या हम महिलाओं की स्वतंत्रता समानता और दुनिया में रोजगार की संभावनाओं में उन्हें सुरक्षित माहौल दे पा रहे हैं इस बात पर सोचने और चिंतन करने की आवश्यकता है।
आज राजधानी लखनऊ के बंथरा थाना क्षेत्र के अमावा जंगल में लगभग 25 वर्षीय युवती की दिनदहाड़े रेप करके हत्या कर दी गई। युवती अपने घर से इंटरव्यू देने के लिए निकली थी ।गांव के रहने वाले अपराधिक प्रवृत्ति के कुछ लड़कों ने उसे अगवा करके उसकी हत्या कर दी जो कि पहले भी हत्या के इल्जाम में जेल जा चुके हैं अब प्रश्न यह उठता है कि दिनदहाड़े होती इस हत्या का गुनहगार कौन है? हमारी कानून व्यवस्था है या अदालत हैं जो रेप और हत्या के अपराधियों को सहजता से छोड़ देती हैं या वो कानून व्यवस्था जो ऐसे अपराधियों पर निगरानी नहीं रख पाई और एक बेकसूर को कुत्सित हिंसा का शिकार होना पड़ा।हमारे फास्ट ट्रैक कोर्ट इतने एक्टिव क्यों नहीं हैं कि वह त्वरित न्याय देकर ऐसे अपराधियों को जल्द से जल्द सजा दे ताकि अन्य अपराधी को सजा के डर से नया अपराध करने से डरे ।
आज हम विश्व में नंबर एक जनसंख्या रखने वाले देश का गौरव प्राप्त कर रहे हैं पर क्या हम अपनी जनसंख्या को नियंत्रित कर पा रहे हैं क्या हम अपने युवाओं को नियंत्रित विकास दे पा रहे हैं? युवा शक्ति की उर्जा का देश के विकास में उपयोग कर पा रहे हैं?हम समानता की बात तो करते हैं पर स्त्री और पुरुष को समान अधिकार और समान सुरक्षा दे पा रहे हैं आज भी गांव गली मोहल्ले और शहरों में रात की बात तो दूर दिन में भी बेटियां असुरक्षित है असुरक्षा में एक प्रमुख कारण नशा है । आज नशा सभी के लिए आसानी से उपलब्ध है और हमारा युवा नशे की गिरफ्त में बहका जा रहा है, नशे और सेक्स की पूर्ति के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। आज समाज में हो रहे ज्यादातर अपराधों का मुख्य कारण खोजने पर नशे की लत और नशे के कारण दिमाग में होते झंझावात और कुत्सित मानसिकता ही निकलती है। जब कोई घटना होती है तब हम न्याय की गुहार लगाते हैं और इसके बाद होता कुछ नहीं और हम नई घटना के इंतजार में शांत होकर बैठ जाते हैं निश्चित रूप से अब जागना होगा, संभालना होगा और समान नागरिक संहिता ,समान जनसंख्या नियंत्रण के उपाय सभी के लिए समान रूप से लागू करने होंगे ताकि एक नियंत्रित जनसंख्या, नियंत्रित युवा विभिन्न सुविधाओं को प्राप्त कर सकेंगे और समाज में व्याप्त कुंठित मानसिकता है दूर हो सकेंगे ।निश्चित रूप से आज हम कलयुग के चरम पर हैं और कुंठा तथा विकृत मानसिकता से ग्रसित हर चौथे आदमी से परेशान है काश इस तरह की दिल दहलाने वाली घटनाओं से देश बच सके। हम लैंगिक समानता को तथा समान नागरिक संहिता को समाज में सम्मानजनक कानूनी मान्यता प्राप्त स्थान दे सकें
रीना त्रिपाठी
ABL24NEWS से
मोहम्मद अरशद अली

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