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भारत में सभी धर्मों के परिवारिक जीवन में मां का प्रभाव सर्वाधिक


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“माँ”

निश्चित रूप से शब्द छोटा है और इसकी महिमा का बखान शैल शब्दों में करवाना असंभव सा है।पूरे विश्व में परिवारवाद की अवधारणा मां के बिना पूर्ण नहीं होती है।
भारत में सभी धर्मों के परिवारिक जीवन में मां का प्रभाव सर्वाधिक है। माता तथा पुत्र /पुत्री का संबंध ही सबकी अपेक्षा सुदृंद और निविड़ है। जीवन के सभी स्तरों में व्यक्त हुआ है –जननी का यह सुगर्भित स्नेह।
अनादि काल से सृष्टि का मूल कारण परमेश्वर है ।उसी परमेश्वर से अपनापन उपलब्ध करवाने के लिए धरती में उसका नाम दिया गया” मां”।
हिंदू के पास उसकी अपेक्षा और मधुर नाम है ही नही। अध्यात्म जगत की पूरी शक्तियां दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती जगतधात्रि एवं काली आदि ईश्वर के विभिन्न स्वरूप हैं यह एक महाशक्ति के विभिन्न रूप हैं। असुर विनाशिनी, विश्व जननी दुर्गा उसी महाशक्ति की अपूर्व प्रतीक है ऐसा विचार पुराणों में वर्णित है जोकि अकाट्य सत्य है। यानी कि वैदिक ग्रंथों से लेकर जहां तक हमारा ज्ञान प्रसारित होता है हमने सर्वोच्च पद फिर वह ज्ञान का हो धन का हो या विद्या कहो मां को ही समर्पित किया।
आज भारतीय गृह देवियों एवं माताओं को यह समझाने की आवश्यकता नहीं है की स्वयं रामकृष्ण एवं शंकराचार्य , विवेकानन्द शिवाजी के समान विभूतियां भी अपनी माताओं के प्रति कितनी ऋणी थी। धार्मिक आध्यात्मिक और राजनीतिक सामाजिक शिक्षा इन सभी ने अपनी माताओं को आदर्श मानकर ही प्राप्त की।
अपनी धर्म निष्ठा के प्रति, अभिमान दक्षता प्राप्ति की एकमात्र आकांक्षा धारण करके भारतीय नारियों के शांत जीवन में ही धर्म का अपेक्षाकृत अधिक संरक्षण किया है तथा उसकी अभिवृद्धि में अनेक युद्धों की अपेक्षा उनका योगदान कहीं अधिक है। भारत की सभ्यता और संस्कृति को विभिन्न विपरीत परिस्थितियों के बावजूद संरक्षित करने का श्रेय भी “माँ” को जाता है।
प्रत्येक मां कोआज भी यह निश्चय करना चाहिए कि उसकी संताने महान बनेगी। शिवाजी, महाराणा प्रताप ,चंद्र शेखर आजाद ,भगत सिंह इत्यादि मां के योगदान के बिना इतिहास के सुनहरे पन्ने ना बनते।
क्या हम अपनी संतानों में असीम शक्ति स्फूर्ति और समर्पणऔर भक्ति जागृत नहीं कर सकते हैं। यह भक्ति हमारे मन में उस जिज्ञासा को उत्पन्न करेगी जिसके कारण हम जन-जन की व्यथा देश का दुख तथा आधुनिक समय में धर्म पर आई हुई विधाओं को अनुभव कर सकेंगे। यदि हम अपने बालकों में बचपन से हीअसीम विवेक विकसित कर दें तो बड़े होने पर उनके राह में आने वाले दो राहों में सही निर्णय लेने में सफलता मिलेगी। आधुनिकता और वैश्वीकरण के समय में भी बच्चेमां के सहयोग और निर्देशन से व्यसनों और दुर्गुणों से बचे रखेंगे।
यह वृद्धि गत होने वाला ज्ञान ही उन दृढ़ निश्चय संघर्षशील युवाओं को जन्म देगा जो विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में देश समाज और परिवार को सुदृंता पूर्वक सही रास्ते पर ले जाएगा। प्रकृति में व्याप्त उन सभी विधाओं को हमने अपने ज्ञान से जानने की कोशिश की है तथा जिसने भी प्रेम दिया ,कल्याण की भावना से संसार की तरफ देखा उसे भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने मां का दर्जा ही दिया है.. फिर शीतल जल से पूरी भारत भूमि को धन्य करने वाली मां गंगा हो, या पूरी पृथ्वी को अस्तित्व देने वाली धरती मां हो।
पृथ्वी हो ,प्रकृति हो या फिर मां हो इन सभी को सृष्टि का निर्माण कर्ता असीम ऊर्जा का भंडार ,ईश्वर के निर्माण कार्य का संयोजक बनाकर स्थापित किया गया है। परिस्थितियां चाहे कोई भी हो सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर तब तक सुधर नहीं हो सकती जब तक मां का निर्देशन, मां की शुभेक्षा और मां का स्नेही स्पंदन अपने पुत्र और विश्व को नहीं मिलता।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति की अक्षुणता को बनाए रखते हुए सभी धर्मों में मां के महत्व और महिमा के बखान आज और भविष्य में भी उसी श्रद्धा विश्वास और धार्मिकता से ले जाया जाए इसके लिए जरूरी है कि हम उन्नत संतानों, स्व विवेकी गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन सफलतापूर्वक करते रहे।
असीम दर्द असीम खुशियां और असीम प्रेम के संवाहक विश्व धरा पर विराजमान सभी “मां”को नमन और प्रणाम।
रीना त्रिपाठी
भारतीय नागरिक परिषद
महामंत्री

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